Navdeep Singh, एक ऐसा नाम जिसने भारतीय खेल जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। हरियाणा के पानीपत से आने वाले नवदीप ने paralympic में अपने अद्वितीय प्रदर्शन से देश का नाम रोशन किया है। 2024 पेरिस पैरालंपिक्स में उन्होंने पुरुषों की जेवलिन थ्रो F41 श्रेणी में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। भारत को पेरिस पैरालंपिक में 29वां मेडल मिला है। वह 7 गोल्ड, 9 सिल्वर और 13 ब्रॉन्ज के साथ 16वें स्थान पर है।
ईरान के एथलीट को अयोग्य घोषित करने के साथ ही भारत को पेरिस पैरालंपिक खेलों में सातवां गोल्ड मेडल मिल गया है। जेवलिन थ्रो में Navdeep Singh ने शनिवार को मेंस जेवलिन F41 कैटेगरी में 47.32 मीटर के नए पैरालंपिक रिकॉर्ड के साथ सोना जीता। इस कैटेगरी में देश को पहला मेडल मिला है। नवदीप के थ्रो ने टोक्यो 2020 में चीन के सन पेंगशियांग द्वारा बनाए गए 47.13 मीटर के पिछले पैरालंपिक रिकॉर्ड को तोड़ दिया। दिलचस्प बात है कि नवदीप ने पहले सिल्वर जीता था, जिसे बाद में सोने में बदल दिया गया।
Navdeep Singh प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
Navdeep Singh का जन्म 11 नवंबर 2000 को हुआ था। उनके पिता एक राष्ट्रीय स्तर के पहलवान थे, जिन्होंने नवदीप को खेलों के प्रति प्रेरित किया। छोटी कद-काठी के बावजूद, नवदीप ने अपने आत्मविश्वास और मेहनत से सभी बाधाओं को पार किया।
खेल यात्रा की शुरुआत
Navdeep Singh ने अपनी खेल यात्रा एथलेटिक्स से शुरू की, लेकिन जल्द ही उन्होंने जेवलिन थ्रो में अपनी विशेषता बनाई। 2017 में, उन्होंने एशियन यूथ पैरा गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। इसके बाद, 2021 में दुबई में आयोजित वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
टोक्यो paralympic 2020
टोक्यो पैरालंपिक्स 2020 में नवदीप ने पुरुषों की जेवलिन थ्रो F41 श्रेणी में चौथा स्थान प्राप्त किया1। यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव था, जिसने उन्हें और भी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।
पेरिस paralympic 2024
2024 पेरिस पैरालंपिक्स में Navdeep Singh ने अपने करियर का सबसे बड़ा मुकाम हासिल किया। उन्होंने 47.32 मीटर की दूरी पर जेवलिन फेंककर स्वर्ण पदक जीता। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि यह पहली बार था जब किसी भारतीय ने इस श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता।
संघर्ष और सफलता
Navdeep Singh की सफलता की कहानी केवल उनकी मेहनत और प्रतिभा की नहीं है, बल्कि उनके संघर्षों की भी है। छोटी कद-काठी के कारण उन्हें कई बार ताने सुनने पड़े, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके कोच विपिन कसाना ने उन्हें सही मार्गदर्शन दिया और उनकी मेहनत को सही दिशा में मोड़ा।
भविष्य की योजनाएं
Navdeep Singh का सपना है कि वह आने वाले वर्षों में और भी पदक जीतकर भारत का नाम रोशन करें। वह युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनना चाहते हैं और उन्हें यह संदेश देना चाहते हैं कि मेहनत और आत्मविश्वास से हर बाधा को पार किया जा सकता है।
पैरा-एथलेटिक्स के प्रमुख तत्व
वर्गीकरण: पैरा-एथलेटिक्स में एथलीटों को उनकी शारीरिक, दृष्टि या बौद्धिक चुनौतियों के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है। यह वर्गीकरण सुनिश्चित करता है कि प्रतियोगिताएं निष्पक्ष और संतुलित हों।
प्रतियोगिताएं: पैरा-एथलेटिक्स में ट्रैक और फील्ड इवेंट्स शामिल होते हैं, जैसे कि 100 मीटर दौड़, लंबी कूद, जेवलिन थ्रो, और रेस वॉकिंग। प्रत्येक इवेंट में एथलीटों की क्षमताओं के अनुसार विभिन्न श्रेणियां होती हैं।
महत्व: paralympic खेलों में पदक जीतने का महत्व ओलंपिक से कम नहीं होता है। यह एथलीटों के लिए एक बड़ा मंच है जहां वे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर सकते हैं और देश का नाम रोशन कर सकते हैं।
पैरा-एथलेटिक्स का इतिहास
पैरा-एथलेटिक्स की शुरुआत 1960 में हुई थी जब पहली बार रोम में पैरालंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। तब से, यह खेल लगातार विकसित हो रहा है।
भारतीय पैरा-एथलीट्स की सफलता
भारत के कई पैरा-एथलीट्स ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। जैसे कि देवेंद्र झाझरिया, जिन्होंने जेवलिन थ्रो में दो बार स्वर्ण पदक जीता है, और मरियप्पन थंगावेलु, जिन्होंने हाई जंप में स्वर्ण पदक जीता है। इन एथलीट्स ने न केवल अपनी व्यक्तिगत चुनौतियों को पार किया है, बल्कि देश के लिए गर्व का कारण भी बने हैं।
पैरा-एथलेटिक्स न केवल एक खेल है, बल्कि यह उन एथलीट्स की प्रेरणादायक कहानियों का संग्रह भी है जिन्होंने अपनी चुनौतियों को पार कर सफलता हासिल की है। यह खेल हमें यह सिखाता है कि अगर हमारे पास आत्मविश्वास और मेहनत है, तो हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।