Avani Lekhara, एक ऐसा नाम जो आज हर भारतीय के दिल में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। अवनि ने अपने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प से न केवल खेल जगत में बल्कि समाज में भी एक नई मिसाल कायम की है। आइए जानते हैं उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी।
पेरिस पैरालिंपिक में भारत ने अपना पहला गोल्ड मेडल जीत लिया है। भारत ने आज दो पदक जीते। जयपुर की Avani Lekhara और मोना अग्रवाल ने आर-2 महिला 10 एम एयर राइफल एसएच-1 में गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल जीते। फाइनल राउंड में अवनी पहले और मोना तीसरे नंबर पर रहीं। गोल्ड पर निशाना साधने वाली अवनी ने अपना ही पैरालिंपिक रिकॉर्ड भी तोड़ा। टोक्यो पैरालिंपिक में उन्होंने 249.6 पॉइंट हासिल कर पैरालिंपिक रिकॉर्ड बनाया था। इस बार 249.7 पॉइंट हासिल कर नया रिकॉर्ड बनाया।
Avani Lekhara 2020 पैरालिंपिक में गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं। वहीं, मोना अग्रवाल ने पहली बार पैरालिंपिक में हिस्सा लिया। अवनी लेखरा ने टोक्यो में खेले गए पैरालिंपिक गेम्स 2020 में शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 मीटर एयर राइफल एसएच-1 स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था। उन्हें 50 मीटर राइफल में ब्रॉन्ज भी मिला था। वे पैरालिंपिक में 2 मेडल जीतने वाली भारत की पहली पैरा एथलीट बनी थीं। इसके बाद अवनी ने पैरा शूटिंग वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीता था।
Avani Lekhara की प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
Avani Lekhara का जन्म 8 नवंबर 2001 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मी अवनि के जीवन में शिक्षा और खेल दोनों का महत्वपूर्ण स्थान था। लेकिन 2012 में एक कार दुर्घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। इस दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी, जिससे उन्हें पैरालिसिस हो गया। महज 12 साल की उम्र में इस हादसे ने अवनि के जीवन को एक नई दिशा दी।
खेल से मिली नई राह
दुर्घटना के बाद अवनि ने अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए खेल को चुना। उनकी प्रेरणा का स्रोत था मशहूर खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा। उन्होंने निशानेबाजी (शूटिंग) में रुचि दिखाई और अपनी मां और कोच की सहायता से इस खेल में कदम रखा। जल्द ही उन्होंने अपने हुनर को निखारना शुरू किया और 2015 में पहली बार नेशनल चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया।
पैरालम्पिक से सफलता की कहानी
Avani Lekhara की मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें 2020 टोक्यो पैरा ओलम्पिक में भाग लेने का मौका दिलाया, जहां उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल SH1 इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। वे पैरा ओलम्पिक में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं। इसके साथ ही उन्होंने 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन SH1 इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल भी जीता। अवनि की यह उपलब्धि केवल खेल में नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक सीमाओं को भी पार कर गई।
अवनि का योगदान और प्रेरणा
Avani Lekhara अवनि लेखरा का जीवन हमें सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए। उन्होंने अपने साहस और संकल्प से यह साबित कर दिया कि अगर मन में दृढ़ निश्चय हो तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती। अवनि ने न केवल अपने खेल में उत्कृष्टता हासिल की है, बल्कि उन्होंने समाज में भी एक नई सोच को जन्म दिया है। वे आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं।
Avani Lekhara की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। उनकी यह प्रेरणादायक यात्रा हमें यह विश्वास दिलाती है कि अगर हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
क्या होती है पैरालम्पिक?
पैरालम्पिक एक अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता है जिसमें शारीरिक विकलांगता वाले एथलीट्स भाग लेते हैं। यह ओलंपिक खेलों के समानांतर आयोजित की जाती है और इसमें विभिन्न प्रकार के खेल शामिल होते हैं, जैसे एथलेटिक्स, तैराकी, बास्केटबॉल, निशानेबाजी, और कई अन्य। पैरालम्पिक खेलों का उद्देश्य विकलांग एथलीट्स को एक मंच प्रदान करना है जहां वे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर सकें और समाज में समानता और समावेशिता को बढ़ावा दे सकें।
पैरालम्पिक खेलों की शुरुआत 1960 में रोम में हुई थी और तब से यह हर चार साल में आयोजित की जाती है। इसमें भाग लेने वाले एथलीट्स को उनकी विकलांगता के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ताकि प्रतियोगिता निष्पक्ष और संतुलित हो सके।